बदलता भारत

भारतीय होने के नाते आजादी की हमारी धारणा संविधान से आती है।उसके मुल मे एक प्रस्तावना है,जो संप्रभुता,समानता, न्याय और बंधुत्व के दिशा-निदैशक सिद्धांतो को सुचीबद्ध करती है।अगर समाज मे सामाजिक असमानताए,अन्याय या किसी तरह का भेदभाव पाया जाता है तो हम यह मान सकते है कि हमारी आजादी खतरे. मे है।किसी भी अच्छे समाज की परिकल्पना अटपटा विचार और मान्यता से नही  होना चाहिए उसके पिछे तर्क होना चाहिए ऐसा तर्क जो किसी के खिलाफ न हो।कुछ लोग तर्क देते है कि भारत एक हिन्दू राष्ट है यह भी झूठा तर्क दिया जाता है कि भारतीय सभ्यता का मतलब हिंदू है और भारत मे रहने वाले बाकि   लोग बाहरी है,जबकि हम सभी जानते है की भारतीय सभ्यता का निर्माण असंख्य चीजों से जैसे धर्मो, भाषाओं,जीवन शैलियों और अलग अलग विचारो के मेल से हुआ है।आज भारतीय सभ्यता विश्व मे जींवत है तो इसकी वजह इसकी रंग-बिरंगी विविधता ही है।सामाजिक भेद-भाव हमारे अशिक्षित होना दर्शाता है अगर हम सचमुच शिक्षित होना चाहते है तो हमें दुसरे या अन्य की इज्जत करना सीखना पडेगा