झारखंड की 43 सीटों पर पहले चरण के मतदान में मतदाताओं ने विभाजनकारी राजनीति के बजाय जन मुद्दों को प्राथमिकता दी, ‘लोकतंत्र बचाओ अभियान’ का बयान।
झारखंड विधानसभा चुनाव के पहले चरण के नतीजों से यह साफ है कि मतदाताओं ने नफरत और विभाजन की राजनीति को सिरे से नकारते हुए अपने जीवन से जुड़े असल मुद्दों पर वोट दिया है। दुमका में आयोजित प्रेस वार्ता में ‘लोकतंत्र बचाओ अभियान’ (अबुआ झारखंड, अबुआ राज) के सदस्यों ने अपने अनुभव साझा किए, जो विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में जनता के अधिकारों के मुद्दों पर काम कर रहे हैं।
अभियान के सदस्यों ने भाजपा के सांप्रदायिक और विभाजनकारी अभियान की आलोचना करते हुए कहा कि पार्टी आदिवासियों और मूलवासियों की असली समस्याओं पर ध्यान नहीं दे रही है। इसके बजाय, भाजपा धार्मिक ध्रुवीकरण पर जोर दे रही है और लगातार "अवैध घुसपैठियों" का मुद्दा उठा रही है। हालांकि, वे CNT-SPT कानून, सरना कोड, भूमि अधिकार, 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति और किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर मौन हैं। पहले चरण में आदिवासी और मूलवासी मतदाताओं ने भूमि अधिकार, सामाजिक सुरक्षा पेंशन, कृषि ऋण माफी, और बिजली बिल राहत जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर वोट दिया है।
संथाल परगना क्षेत्र में भाजपा का "बांग्लादेशी घुसपैठियों" पर केंद्रित सांप्रदायिक एजेंडा खोखला साबित हुआ है। भाजपा नेता अपने भाषणों में अक्सर बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा उठाते हैं, जबकि मोदी सरकार ने न्यायालय में माना है कि गायबथान जैसे भूमि विवादों में किसी भी घुसपैठिए की भागीदारी का सबूत नहीं मिला है। एक समिति, जिसमें भाजपा के सदस्य भी शामिल थे, ने जांच में कोई सबूत नहीं पाया। केंद्र सरकार ने संसद में भी बताया कि उसके पास बांग्लादेशी घुसपैठियों का कोई आंकड़ा नहीं है। 'लोकतंत्र बचाओ अभियान' द्वारा किए गए जमीनी तथ्यान्वेषण में भी भाजपा के इस प्रचार का कोई प्रमाण नहीं मिला है, जिससे ये दावे झूठे साबित होते हैं।
भाजपा की कोशिश है कि मुसलमानों को बांग्लादेशी घुसपैठियों का ठप्पा देकर आदिवासियों, हिंदुओं और मुसलमानों के बीच फूट डाली जाए। मजेदार बात यह है कि जहां भाजपा घुसपैठ का मुद्दा उठा रही है, वहीं मोदी और रघुवर दास सरकार ने अडानी पावर प्लांट परियोजना के लिए जबरन आदिवासी भूमि का अधिग्रहण किया, जिससे झारखंड के संसाधनों का नुकसान हुआ। बिजली नीति में बदलाव कर बांग्लादेश को बिजली भेजी गई, जबकि संथाल परगना क्षेत्र अंधेरे में रह गया।
झारखंड, जो जल, जंगल, जमीन और अस्तित्व के संघर्ष से बना राज्य है, झारखंड में पार्टी घोषणापत्रों के बीच स्पष्ट अंतर देखने को मिल रहा है। झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति लागू करने और लैंड बैंक रद्द करने का वादा किया है, जबकि भाजपा इस पर चुप्पी साधे हुए है। भाजपा की आदिवासी-विरोधी राजनीति सरना कोड को अपने घोषणापत्र में शामिल न करने से भी स्पष्ट होती है। जहां एक तरफ झामुमो और INDIA गठबंधन सरना कोड लागू करने की बात कर रहे हैं, वहीं भाजपा के राज्य अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी सरना और सनातन को एक करने की बात कर रहे हैं। केंद्र सरकार ने 1932 खतियान आधारित स्थानीयता नीति और सरना कोड को संविधान की 9वीं अनुसूची में डालने के राज्य के प्रस्ताव को रोक रखा है। पिछड़ों के आरक्षण को 27% करने के राज्य सरकार के प्रस्ताव को भी केंद्र ने अवरुद्ध कर दिया है।
सामाजिक सुरक्षा और पोषण सुरक्षा के मुद्दों पर भी भाजपा और झामुमो के घोषणापत्रों में अंतर देखा जा सकता है। मोदी सरकार ने आंगनवाड़ी और मध्याह्न भोजन के बच्चों के पोषण बजट में कटौती की है, जबकि झामुमो ने प्रतिदिन अंडे या फल देने का वादा किया है। केंद्र सरकार बुजुर्गों को केवल ₹200 प्रति माह की सामाजिक सुरक्षा पेंशन दे रही है, जबकि हेमंत सोरेन सरकार ने इसे बढ़ाकर ₹800 कर दिया है। झामुमो सरकार ने पेंशनधारियों की संख्या 6.6 लाख से बढ़ाकर 30 लाख कर दी है और पेंशन राशि को ₹2,500 तक करने की घोषणा की है। INDIA गठबंधन ने राशन की मात्रा को 5 किलो से बढ़ाकर 7 किलो करने का वादा किया है, जबकि भाजपा ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
भाजपा के शीर्ष नेता, जिनमें प्रधान मंत्री, गृह मंत्री, और हिमंत बिस्व सरमा शामिल हैं, लोगों के असली मुद्दों पर चर्चा करने के बजाय नफरत भरे और सांप्रदायिक भाषण दे रहे हैं। भाजपा नेता निशिकांत दुबे ने तो झारखंड को विभाजित कर संथाल परगना को अलग करने तक की बात कर दी है। हालिया शोध रिपोर्ट ने भाजपा की सोशल मीडिया रणनीति में नफरत फैलाने के एजेंडे को उजागर किया है। पार्टी करोड़ों खर्च करके सोशल मीडिया पर झूठी और सांप्रदायिक बातें फैला रही है, और आदिवासी मुख्यमंत्री को जानवर, मच्छर, हैवान के रूप में चित्रित कर रही है। चुनाव आयोग को शिकायतों के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
'लोकतंत्र बचाओ अभियान' को पूरा विश्वास है कि पहले चरण की तरह आगामी चरणों में भी आदिवासी और मूलवासी मतदाता अपने असली मुद्दों के आधार पर निर्णय लेंगे और नफरत और सांप्रदायिकता की साजिश को खारिज कर देंगे।