लुगू बुरू संथाल आदिवासीयों की सबसे बड़ी तीर्थ स्थल

लुगू बुरू घंटाबाड़ी धोरोम गाढ़ संथाल आदिवासियों का वो ऐतिहासिक स्थल है, जहाँ हजारों वर्ष पूर्व यहां के पहाड़ो पर (संथाल आदिवासियों के) उनके  पूर्वजों ने  संथाल आदिवासियों का संविधान बनाया था। जिसमें जन्म से लेकर मृत्यु तक , त्योहारों, देवताओं और उनकी पूजा इत्यादि करने की (नियम और कानून) पद्धति शामिल है,जिसे आज भी संथाल आदिवासी मानते हैं। लुगू बुरू घंटाबाड़ी धोरोम गाढ़  को संथाल संस्कृति ,रीति रिवाजो का जन्म स्थल माना जाता है। कहा जाता है कि इनकी अलग संस्कृति,रहन-सहन ,खान पान इत्यादि के कारण दिकु(outsiders) लोगों द्वारा इस समुदाय (संथाल) के लोगों के साथ भेदभाव किया जाने लगा तब इस समुदाय के कुछ  लोग (लुगू बुरू और इनके साथी) स्वायत्त प्रशासनिक प्रणाली का निर्माण और गठन करने के लिए अलग-अलग जगहों पर यात्रा कर रहे थे। वे इस काम के लिए उपयुक्त शांत जगह  की तलाश कर रहे थे।अंत में वे लोग लुगू बुरू पहाड़ (झारखंड के बोकारो जिला के लालपनिया जगह) पर पहुंचे और इसी पहाड़ में वे 12 वर्षों के लंबी चर्चा के बाद अपने स्वयत्त प्रशासनिक प्रणाली को तैयार किया।

लुगूबुरू को संथाल आदिवासियों के संस्थापक पिता के रुप में देखा जाता है। कहा जाता है कि ये भगवान के अवतार थे। इनमें दैवीय शक्ति थी ये खुद को किसी भी रुप में बदल सकते थे और बाद में इन्होनें लोक कल्याण के लिए खुद को पहाड़ और जंगलो में बदल दिया जिसे लुगू बुरु पहाड़ी के नाम से जाना जाता है।

                                                     चित्र :- लुगू बुरू पहाड़ की चोटी का दृश्य

विदेशी  श्रद्धालु -

हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा (कार्तिक कुणमी चांदो) के दिन  देश के विभिन्न भागों के साथ- साथ  बांग्लादेश, म्यांमार,नेपाल,श्रीलंका इत्यादि सीमावर्ती देशों से संथाल श्रद्धालु लुगू बुरू में लुगू बाबा और लुगू आयो(grandfather and granny of santhals, called lugu baba and lugu aayo)  के दर्शन को आते हैं ।  लुगू बाबा एवं लुगू आयो का आश्रय गुफाओं एवं चट्टानो के बीच पहाड़ की चोटी में स्थित है। यहाँ तक पहुँचने के लिए 7-8 किमी दूर पैदल जंगलों से होकर गुजरना पड़ता है, जिसमें लगभग 4 घंटे का समय लगता है।

घंटाबाड़ी धोरोमगढ़ और सीतानाला झरना -

लुगू बुरू पहाड़ के तलहटी में घंटाबाड़ी धोरोमगढ़ और सीतानाला झरना है। घंटाबाड़ी धोरोमगढ़ में लुगू बुरू और इनके साथियों ने मिलकर संथाल आदिवासियों की स्वयत्त प्रशासनिक प्रणाली कि रचना की थी। घंटाबाड़ी धोरोमगढ़ में संथाल आदिवासियों ने जिस जगह (चट्टान) पर बैठकर अपनी स्वयत्त प्रशासनिक प्रणाली कि रचना की थी,उस स्थान को दोरबार चट्टनी ( दरबार चट्टान ) कहा जाता हैं। इन्हीं चट्टानों पर समूह में छोटे- छोटे गोलाकार गड्ढे हैं, जिसे उखुड़ कड़ीथान कहा जाता है। उखुड़ कड़ीथान की भौगोलिक संरचना चट्टानों के बीच एक हाथ (लगभग 1 फिट) गहरे गोलाकर गढ़े जैसी है, जिसमें सिर्फ आपके हाथ ही अंदर जा सकते हैं। उखुड़ कड़ीथान के बारे में कहा जाता है कि उस वक्त संथाल आदिवासी इन गड्ढ़ो का उपयोग ओखली के रुप में करते थे। पूरे लुगू बुरू पहाड़ में इस प्रकार की संरचना कहीं भी नही है।

                                                                       चित्र :- उखुड़ कड़ीथान

सीतानाला झरना का उद्गम लुगू बुरू पहाड़ पर ही हुआ है। सीतानाला झरना पहाड़ के चोटी में स्थित लुगु बाबा एवं लुगु आयो का आश्रय के समीप से होकर गुजरती है और घंटाबाड़ी धोरोमगढ़ के तलहटी में एक झरने के रुप में चट्टानो को चीरते हुए नीचे गिरती है । ये झरना आगे चलकर तेनूघाट बाँध में मिल जाती है। सीतानाला झरना लुगू बुरू पहाड़ पर रह रहे कई पशु- पछियों का प्यास भी बुझाती है। श्रद्धालु  पहाड़ के चोटी पर सीतानाला झरना में स्नान करके लुगू बाबा एवं लुगू आयो का दर्शन करते हैं।

विडिओ :- सीतानाला झरना

क्यों खास है कार्तिक पूर्णिमा की रात -

वैसे तो आमदिनों में भी श्रद्धालु यहाँ पर पूजा करने को आते हैं। लेकिन, कार्तिक पूर्णिमा कि रात की पूजा इसलिए प्रसिद्ध हैं क्योकि इस दिन सूर्य,चंद्रमा और पृथ्वी में इस जगह पर ऐसा मेल बनता है, जिससे चाँद कि रोशनी गुफाओं में लुगू बाबा एवं लुगू आयो के आश्रय तक पहुँचाती हैं। जबकि अन्य महिनों की पूर्णिमाओं में यहाँ पर अँधेरा छाया रहता है। इस तरह का भौगोलिक निर्देशांक कार्तिक पूर्णिमा की रात में लुगू बाबा एवं लुगू आयो के आश्रय स्थल पर बनना इसके महत्व को ओर बढ़ा देता है। चाँद की रोशनी में लोग सीतानाला में नहाते हैं और लुगू बाबा एवं लुगू आयो के दर्शन करते हैं।

चित्र :-लुगू बाबा एवं लुगू आयो के दर्शन करते श्रद्धालु

लुगू बाबा एवं लुगू आयो  तक पहुँचने का रास्ता -

लुगू बाबा एवं लुगू आयो के दर्शन करने के लिए मुख्य रुप से दो प्राकृतिक रास्तों का उपयोग होता हैं ,लेकिन बाद  में दोनों रास्ते पहाड़ की चोटी में मिलकर एक हो जाते हैं। पहला रास्ता - घंटाबाङ़ी धोरोमगढ़ के पास है ,यह ऊपर चढ़ने का मुख्य रास्ता है। इस रास्ते में कम चढ़ाई या ढ़लान हैं और 7-8 किमी का सफर तय करने के बाद ही लुगू बाबा एवं लुगू आयो के दर्शन कर सकते हैं। इस रास्ते में थकान कम हैं ,लेकिन 4 घंटे का लंबा समय सिर्फ चढ़ने में लगता हैं। दूसरा वैकल्पिक मार्ग चोरगंवा नामक गांव से होकर जाता है। यह रास्ता खड़ी चढ़ाईयों से भरा हुआ हैं। लगभग 3 किमी का सफर 2 से 2.30 घंटे में तय करने के बाद  पहाड़ की चोटी पर पहुँचते हैं। चाँदनी रात, पहाड़ों से होकर बहने वाली पानी की आवाज और हल्की ठंडी हवाऐ जब लोगों के बदन को छू कर गुजरती है तो श्रद्धालुओं को ओर ज्यादा उर्जावान बना देती हैं। वापस आने का केवल यही दो मार्ग ही है। दोनों रास्तों में किसी प्रकार कि सीढ़ियाँ नही बनी हुई ना ही रास्तों के बीच में किसी तरह का लाईट की व्यवस्था की गई है। वहीं दूसरी ओर हिंदु धर्म के तीर्थ स्थल जैसे वैष्णो देवी, अमरनाथ, केदारनाथ इत्यादि स्थलों पर ऊपर चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ और रास्तो पर लाईटे लगी होती है। लुगू बुरू पहाड़ की देखरेख करने वाली समितियों का कहना है कि इसकी प्राकृतिक खूबसूरती ही बाकी धर्म से अलग बनाती है। समितियों का कहना हैं कि रास्तो पर लाईटे लग जाने से कई जंगली जानवर को परेशानी हो सकती है जिस कारण यहां पर लाईटे नही लगाई गई हैं। वास्तव में देखा जाए तो यह बहुत ही प्रगतिशील विचार धारा है और यह पर्यावरण केंद्रित लोकतांत्रिक समाज को प्रदशित करता है।

                                                                         चित्र :- लुगू बुरू

जीवन रक्षक दुलर्भ औषधियों  का भंडार है लुगू बुरू पहाड़ -

लुगू बुरू पहाड़ में कई तरह की दुलर्भ जड़ी- बुटीयाँ पाई जाती है। औषधियों के बारे में ज्ञान रखने वाले श्रद्धालु लुगू बाबा एवं लुगू आयो का दर्शन करके वापस लौटते समय जंगल से कई तरह की दुलर्भ औषधियों का संग्रहण भी करते हैं। ये औषधियों  कई रोगों के निवरण में मदद करती है।


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