जलवायु संकट के दौर में आदिवासी दर्शन का महत्व

 


जलवायु परिवर्तन विश्व के लिए एक गंभीर संकट है। वैश्विक नेता जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। हाल में, जलवायु परिवर्तन और गोल्बल वार्मिंग के संकट को रोकने के लिए COP 26 जैसे विश्वस्तरीय सम्मलेन का आयोजन किया गया था। वर्ष 2019 में, पर्यावरणविद् ग्रेटा थंगर्बग जलवायु परिवर्तन के संकट को रोकने के लिए विश्व में मुहिम चलायी थी जिसें पूरे विश्व के लोगों ने सर्मथन दिया।

हवा और पानी का बाजारीकरण -

जलवायु परिवर्तन और गोल्बल वार्मिंग के कई प्रमुख कारक है लेकिन इसकी सबसे प्रमुख वजह जंगल का कम होना और पैसे के लालच में प्रकृतिक संसाधानो का अंधाधुन दोहन करना है । जलवायु परिवर्तन और गोल्बल वार्मिंग के कारण जैवमंडल दूषित होता जा रहा है। हवा और पानी के साथ- साथ हमारी मिट्टी भी दूषित होती जा रही हैं। शहरों में लोंगो को साफ पानी  खरीदना पड़ता है या फिर घरो मे फिल्टर लगवाना पड़ता है। मानवजनित गतिविधियां मानव और जीव-जंतुओं  के प्रकृतिक निवास स्थाल को खराब कर दिया है । जहां  हवा ,पानी जैसी प्राकृतिक चीजें  मुफ्त में मिलती थी अब उन सब चीजों के लिए  पैसे देना पड़ता है।  बड़े बड़े कल कारखाने हवाओं मे जहरीली धुआं और  कुड़े कचरे को नदियों में डालते है जिससे यमुना ,दामोदर इत्यादी जैसी नदीया प्रदूषित होती जा रही है।

समस्या का समाधान है - आदिवासी दर्शन

जलवायु परिवर्तन की समस्या किसी एक व्यक्ति  कि समस्या नही हैं यह पूरे विश्व के लोगो के लिए चिंता का विषय है। इस समस्या को सामुहिक जिम्मेदारी से खत्म किया जा सकता है। विश्व मे आदिवासी  प्रकृति के सबसे करीब है और गहरा संबंध रखते है। प्रकृति में किसी भी तरह का अचनाक से तेज बदलाव इन्हे नुकसान पहुचाता है। इन सब चीजो के बावजूद आदिवासी दर्शन सदियों से प्रकृति के साथ ताल-मेल बनाकर जीना सिखाता है। आदिवासी दर्शन मानव के साथ- साथ जैवमंड़ल में पाये जाने वाले सभी पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं के साथ मिलजुल कर रहना सिखाता है, साथ ही,वे एक दूसरे की जरुरतो और सुरक्षा का भी ध्यान रखते है।आदिवासी दर्शन प्रर्यावरण को क्षति पहूचाए बिना प्रकृति में भाईचारे के साथ जीवन जीने का दर्शन है। मानव के साथ जीव-जंतुओं ,पेड़-पौधों को उचित सम्मान देने की संस्कृति के कारण आदिवासी दर्शन दूनिया के विभिन्न धर्म दर्शन जैसे हिंदू ,मुश्लिम ,सिख,ईसाई इत्यादि  से अलग है।हिंदू ,मुश्लिम ,सिख, ईसाई इत्यादि  धर्म दर्शन  के केंद्र मे मानव है , जबकि आदिवासी दर्शन के केंद्र मे मानव के साथ जीव-जंतु, पेड़ पौधे शामिल है।



भविष्य के दर्शन के रुप में उभरता आदिवासी दर्शन                                                                                                                                                        
झारखंड में रहने वाले असुर जनजाति इसलिए मशहूर हैं क्योकि ये पर्यावरण को नुकसान पहुचाए बिना जमीन से लौह अयस्क निकालती थी और उससे तलवार जैसे हथियार बनाकर पूरे विश्व में बेचती थी (महिषासुर मिथक और परंपराएँ) आदिवासीयों का प्रकृति के साथ ताल-मेल बनाकर रहना और पर्यावरण को क्षति पहुचाए बिना प्रकृतिक संसाधनो का उपभोग करने की तकनीक पर्यावरण संकट का समाधान बन सकती है।आदिवासी दर्शन वुड वाईड वेब  के सिद्धांत पर काम करता है।आदिवासी दर्शन जलवायु परिर्वतन के प्रभाव को कम करने का उपाय भी बतलाता है और साथ ही समाजवाद, साम्यवाद, स्त्रीवाद, पुंजीवाद, मानवता इत्यादि से आगे बढ़कर ऐसी व्यवस्था कि बात करता है जहां इंसान के साथ- साथ पेड़-पौधो ,जानवरो के अधिकार के साथ सतत पोषणीय विकास कि अवधारण को समाज में रखता हैं।  आदिवासी दर्शन विश्व का ऐसादर्शन है जो लोकतंत्र, नैतिक तानाशाही तंत्र इत्यादि को पिछे छोड़कर पर्यावरण केंद्रित लोकतांत्रिक समाज की स्थापना करता हैं।





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